इस शेर को हमने-आपने शायद हज़ारों बार सुना होगा। हम में से तमाम लोग तो इस शेर को ग़ालिब का समझते हैं। ये शेर हिंदी उर्दू के कद्दावर क़लमकार निदा फ़ाज़ली का है। आज उनकी सालगिरह है। 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में जन्में निदा साहब ने उर्दू शायरी को एक नया आयाम दिया।
प्रतिगतिशील वामपंथी आंदोलन से जुड़े रहे निदा को हर तबके से प्यार मिला और उनके गीतों को काफी पसंद भी किया गया। "घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हसाया जाए" जैसे हमेशा ज़िंदा रहने वाले शेर उनकी पहचान बनें। संसद में भी उनकी शायरी कई बार सुनने को मिली। साल 2013 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया।
नीचे वीडियो में खुद देखिए, जब प्रधानमंत्री मोदी जी ने निदा फ़ाज़ली की एक ग़ज़ल संसद में पढ़ी तो कैसे तालियां गूंजने लगीं।